“नाथूराम गोडसेजी तो देशभक्त थे ही, गाँधी भी थे”

नाथूराम गोडसेजी तो देशभक्त थे ही, गाँधी भी थे.

भारतीय जनता पार्टी की तरफ से हिन्दुओं के लिए पेश की गई ताज़ा आदर्श प्रज्ञा ठाकुर ने जो कहा उसका निष्कर्ष यही है. जब मालेगाँव में हुए आतंकवादी मामले की अभियुक्त प्रज्ञा ठाकुर को भाजपा द्वारा भोपाल से उम्मीदवार बनाए जाने पर सवाल उठा तो भाजपा के मुख्य उत्तेजक ने कहा कि प्रज्ञा ठाकुर हिंदू संस्कृति की प्रतीक हैं.

“नाथूराम गोडसेजी देशभक्त थे, हैं और रहेंगे”, “हिंदूपन की नई प्रतीक” प्रज्ञा ठाकुर के इस बयान के बाद जो शोर उठा, उसके बाद के घटनाक्रम पर ध्यान देने से कुछ दिलचस्प बातें उभर कर आती हैं. भारतीय जनता पार्टी ने इस वक्तव्य से पल्ला छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा कि यह प्रज्ञा का निजी मत है. यह भी भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि विवाद समाप्त हो जाना चाहिए क्योंकि प्रज्ञा ठाकुर ने माफी मांग ली है. लेकिन तब तक सार्वजनिक रूप से प्रज्ञा ठाकुर की तरफ से कोई सफ़ाई नहीं दी गई थी.

फिर प्रज्ञा ठाकुर का बयान आया, “अपने संगठन में निष्ठा रखती हूँ, उसकी कार्यकर्ता हूँ, और पार्टी की लाइन मेरी लाइन है.” इस बयान में पहले के बयान पर कोई अफ़सोस नहीं जताया गया, न उसका कहीं जिक्र आया. इस बयान से यह साफ़ है कि प्रज्ञा अपने अपने वक्तव्य पर कायम थीं. Continue reading

जय श्रीराम का नारा राम की महिमा का उद्घोष नहीं, दबंगई का ऐलान है

बीते दिनों पश्चिम बंगाल में ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाते हुए एक झुंड ने ममता बनर्जी के क़ाफ़िले को रोकने की कोशिश की. ममता गाड़ी से उतर पड़ीं तब नारा लगाने वाले उन्हें देखकर भागने लगे. ममता ने उन्हें ललकारा कि वे ज़रा रुकें. उन्होंने बांग्ला में कहा, ‘हरिदास सब. यही सीखा है, गाली गलौज करना.’

पुलिस ने इस झुंड के तीन लोगों को पकड़ लिया है, थोड़ी देर थाने में बैठाकर फिर छोड़ भी दिया गया.

भारतीय जनता पार्टी ने ममता की इस फटकार को भगवान राम का अपमान बताते हुए तूफ़ान खड़ा करने की कोशिश की. पार्टी के मुख्य उत्तेजक ने, जो भारत के प्रधानमंत्री भी हैं, बंगाल में एक चुनाव सभा में कहा कि इस राज्य में चूंकि ‘जय श्रीराम’ बोलने पर जेल भेज दिया जाता है, वे ममता बनर्जी को चुनौती दे रहे हैं कि वे उन्हें गिरफ़्तार करके दिखाएं.

चुनौती के तौर पर उन्होंने ज़ोर-ज़ोर से जय श्रीराम के नारे लगाए. कुछ उसी अंदाज़ में जैसे बिहार में वे धमकी के अंदाज़ में वंदे मातरम् का नारा लगाते रिकॉर्ड किए गए थे.

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भारतीय चुनाव में ग़लत नाम का ख़तरा

“आखिर नाम में क्या रखा है?”,लिखनेवाला भारतीय न था,यह तो सवाल से ही मालूम हो जाता है. भले ही सदियों पहले उसने यह लिखा हो और ऐसे मुल्क का बाशिंदा वह हो, जिसने भारत को खुद को देखने का तरीका सिखाने की कोशिश की. लेकिन जो भारत का है, खासकर उत्तर भारत का, उसे मालूम है कि नाम में ही सब कुछ रखा है.

अतिशी मरलेना कौन है? एक पार्टी ने बताया, अरे, आपको नाम से मालूम नहीं पड़ता? यह ज़रूर ईसाई है! दूसरी ने, जो शायद ईसाइयों को ज़्यादा जानती हो, कहा कि यह नाम कुछ अजीब सा है,ईसाई नहीं,यह यहूदी है. आप चाहें तो शेक्सपीयर की तरह कह उठें, अरे, नाम में क्या है? या भारतीय कवि की तरह, “जात न पूछो साधु की” लेकिन अतिशी को मालूम है कि राजनीतिज्ञ साधु नहीं और जो खुद को साधू कहते हैं उन्हें भी चुनाव के वक्त बताना पड़ता है कि वे ठाकुर हैं! तो इस वक्त के भारत में कवि काम न आएँगे. इसलिए उन्होंने प्रेस के जरिए जनता को बताया कि मेरा नाम अतिशी मरलेना है लेकिन इससे भ्रम में न पड़ जाइए कि मैं ईसाई या यहूदी हूँ,मैं पूरी हिंदू हूँ,बल्कि और भी पक्की क्योंकि मैं क्षत्रिय हिंदू हूँ. दुष्प्रचार के झाँसे में न आइए.
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